• Skip to primary navigation
  • Skip to content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • होम
  • About Us
  • Contact Us
  • FAQ
  • Log In
  • Register
  • SUBMIT YOUR STORY HERE

Indian Paper Ink

Grab Your Ink 🖊️

  • एडवेंचर
  • रहस्यमय
  • horror
  • अध्यात्म
  • Love
  • कॉमेडी
  • लेख
  • सुपरहीरो
  • E-book Store
  • Your E-Books
  • Checkout

भगवान ने भक्त सखूबाई की चक्की चलाई

November 7, 2019 By indianpaperink 2 Comments

जब से भगवान हैं, तभी से उनके  भक्त हैं। जिस प्रकार भगवान और उनकी कथा अनादि हैं, उसी प्रकार भक्त और उनकी कथा अनादि हैं।

भक्त भगवान की लीलाओं के साथी हैं; क्योंकि अकेले भगवान की कोई लीला हो ही नहीं सकती।

इसलिए भक्तों के चरित्र की गाथाएं मन को आह्लादित कर शान्ति प्रदान करती हैं और सांसारिक कष्टों से मुक्ति दिलाती हैं।

भगवान पण्ढरीनाथ और उनकी परम भक्त सखूबाई के ऐसे ही अद्भुत सम्बन्ध का वर्णन यहां किया जा रहा है।

भगवान विट्ठल (पण्ढरीनाथ, पाण्डुरंग)

की परम भक्त सखूबाई

भगवान विट्ठल की भक्त, सरल हृदया सखूबाई महाराष्ट्र में कृष्णा नदी के तट पर कन्हाड़ गांव में एक ब्राह्मण परिवार की वधू थीं।

उसके परिवार में कर्कश, दुष्ट, कुटिल और कठोर हृदय सास-ससुर व पति थे।

सखूबाई को सताने में वे कोई कसर नहीं उठा रखते थे।

भूखे पेट बगैर आराम किए सखूबाई अपना कर्तव्य समझकर दिन-रात काम करती परन्तु इतने पर भी उसकी सास बगैर दो-चार लात-घूंसे जमाए और उसको बुरा-भला कहे संतुष्ट न होती थी।

वह इन घोर दु:खों को अपने कर्मों का भोग और भगवान का आशीर्वाद मानकर सहती और सदा प्रसन्न रहती।

महाराष्ट्र के पण्ढरपुर में आषाढ़ शुक्ला एकादशी को मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से लोग भगवान पण्ढरीनाथ के दर्शनों को आते हैं। इस बार जब सखूबाई नदी पर पानी भर रही थी, उसने लोगों को लाल पताकाएं लिए, पांवों में घुंघरु बांधे ‘विट्ठल विट्ठल’ का कीर्तन करते हुए पण्ढरपुर के मेले में जाते हुए देखा।

सब लोगों को जाते देखकर उसके मन में भी भगवान पाण्डुरंग के दर्शनों की तीव्र इच्छा हुई।

सखू गांव की पड़ोसन को बताकर उस संतमंडली के साथ पण्ढरपुर को चल दी।

पड़ोसिन ने जब यह समाचार सखू के घर जाकर सुनाया तो उसका पति उसे मारपीटकर गालियों की बौछार करता हुआ घर ले आया।

sakku bai ki katha

सास-ससुर व पति–तीनों ने विचार किया कि दो सप्ताह तक, जब तक कि पण्ढरपुर की यात्रा चलती है, तब तक सखू को घर पर कसकर खंभे से बांधकर रखेंगे और उसे कुछ भी खाने को नही दिया जाएगा।

उन्होने सखू को रस्सी से इतने कसकर बांधा कि उसके दुर्बल शरीर पर गड्डे पढ़ गए।

बंधन में बंधी हुई सखू कातर स्वर में रो-रोकर भगवान से प्रार्थना करने लगी–‘हे दयामय! मेरे तो जो कुछ हैं सो आप ही हैं और मैं भली-बुरी जैसी हूँ, आपकी ही हूँ। मेरी इच्छा थी कि मैं एक बार आपके चरणों के दर्शन कर लेती तो मेरे प्राण सुख से निकलते। क्या मेरी इतनी-सी भी बात न सुनोगे, दयामय।’

सखूबाई की आर्त पुकार सुनकर भगवान ने धरा सखू का रूप

शरणागत की रक्षा करना कृपालु भगवान का स्वभाव है।

गजेन्द्र ने जब आर्त पुकार की तब भी वैकुण्ठनाथ ग्राह से उसके उद्धार के लिए दौड़े चले आए।

उसी प्रकार सखू की आर्त पुकार से पण्ढरीनाथ का हृदय द्रवित हो गया और वे सखू की पड़ोसिन का रूप धारणकर सखू के पास आकर बोले–’मैं पण्ढरपुर की यात्रा पर जा रही हूँ, तू नहीं चलेगी!’ सखू ने उत्तर दिया–’मैं जाना तो चाहती हूँ पर यहां बंधी हुई हूँ।

मुझ पापिनी के भाग्य में भगवान पण्ढरीनाथ के दर्शन कहां!’ पड़ोसिन वेषधारी भगवान ने कहा–’तू उदास मत हो, तेरे बदले मैं यहां बंध जाती हूँ।

’ यह कहकर भगवान ने तुरन्त उसके बन्धन खोल दिए और सखू यात्रियों के साथ पण्ढरपुर चली गयी।

आज सखू का केवल खम्भे से बन्धन नहीं खुला, उसके सारे बंधन सदा के लिए खुल गए; वह मुक्त हो गयी।

सखू का वेष धारण किए भगवान कसकर बंधन में बंधे हैं।

सखू के सास-ससुर आते और बुरा-भला कहकर चले जाते; और भगवान भी सुशील बहु की तरह सब कुछ सह रहे हैं।

sakku bai ki katha

इस प्रकार बिना खाए-पिए भगवान को बंधन में बंधे हुए पूरे पंद्रह दिन हो गए; उनका शरीर पीला पड़ गया पर सास-ससुर का दिल न पसीजा।

परन्तु पति के मन में विचार आया कि पूरे पन्द्रह दिनों से सखू ने कुछ भी नहीं खाया है, कहीं मर गयी तो गांव में बड़ी बदनामी होगी; फिर दूसरा विवाह होना भी मुश्किल है।

इस तरह भय और स्वार्थ से पश्चात्ताप करता हुआ वह सखू वेषधारी भगवान के पास पहुंचा और उन्हें बंधन से मुक्त कर क्षमा मांगने लगा।

भक्त के लिए भगवान की असीम दयालुता

सखू के घर वापिस आने से पहले ही अन्तर्धान होने से सखू की विपत्ति बढ़ जायेगी, ऐसा सोचकर भगवान ने वहीं रहने का निश्चय किया।

सखू के प्रेम के कारण भगवान उन दुष्टों की सेवा करने लगे।

नदी से पानी लाना, झाड़ू देना, कूटना-पीसना, भोजन बनाना यह सारा काम भगवान पण्ढरीनाथ घर में करते थे।

एक आज्ञाकारी पत्नी की भांति भगवान स्नानकर रसोई बनाते और तीनों को भोजन कराते।

उस भोजन का स्वाद और प्रभाव कुछ विलक्षण था।

फलस्वरूप सास-ससुर व पति–तीनों का व्यवहार सखू के प्रति अनुकूल हो गया।

इधर सखूबाई पण्ढरपुर पहुंचकर यह भूल गयी कि उसकी जगह घर पर अन्य कोई स्त्री बंधी हुई है।

उसने प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक प्राण हैं वह पण्ढरपुर की सीमा से बाहर नहीं जाएगी।

जैसे ही मन्दिर में सखू ने भगवान पण्ढरीनाथ के दर्शन किए, उनके प्रेम व सौन्दर्य में अभिभूत हुई सखू भगवान के ध्यान में समाधिस्थ हो गई और वहीं उसके प्राण कलेवर छोड़कर निकल गए तथा शरीर जमीन पर गिर पड़ा।

संयोग से उसके गांव के एक ब्राह्मण ने उसे पहचानकर अपने साथियों के साथ उसका अंतिम-संस्कार कर दिया।

पति को बंधन में देखकर रुक्मिणीजी को हुई चिन्ता

जब रुक्मिणीजी ने देखा कि सखू तो मर गई पर मेरे पति इसकी जगह बहू बने बैठे हैं और उसके परिवार की सेवा कर रहे हैं तो मैं तो बुरी तरह फंस गई!

यह सोचकर उन्होंने श्मशान में जाकर सखू की हड्डियां बटोरीं और उनमें प्राणों का संचार कर दिया। नये शरीर में सखू जीवित हो गई।

रुक्मिणीजी ने सखू से कहा–’तेरी प्रतिज्ञा थी कि तू इस शरीर से पण्ढरपुर से बाहर नहीं जाएगी, अब तेरा वह शरीर तो जल गया।

यह तो तेरा नया शरीर है; अत: तू अब इस नए शरीर से यात्रियों के साथ घर लौट जा।

तेरा कल्याण होगा।’ सखू को लगा कि जैसे वह सोकर उठी हो।

सखू दो दिन में कन्हाड़ पहुंच गयी।

सखू के गांव में आते ही

भगवान पड़ोसिन का वेष धरकर घड़ा लेकर नदी के तट पर सखू से मिले।

सखू ने उसे देखकर कहा–’बहिन! मैंने तुम्हें बहुत कष्ट दिया।’ ‘कष्ट की क्या बात है, यह कहकर भगवान ने सखू को घड़ा पकड़ा दिया और अदृश्य हो गए।

पानी भरकर सखू घर पहुंची तो उसे सबके बदले व्यवहार को देखकर बहुत आश्चर्य हुआ।

कुछ दिन बाद सखू का अंतिम संस्कार करने वाला ब्राह्मण उसकी मृत्यु की सूचना देने उसके घर पहुंचा।

परन्तु सखू को घर में काम करते हुए देखकर उसे बहुत आश्चर्य हुआ।

उसने सखू के सास-ससुर से कहा–’सखू की तो पण्ढरपुर में मौत हो गयी थी,

कहीं यह तुम्हारे घर में प्रेत बनकर तो नहीं आ गयी है।

’ सास-ससुर और पति तीनों ने कहा कि सखू तो पण्ढरपुर गई ही नहीं थी।

सखू को बुलाकर जब सबने उससे बहुत जोर देकर पूछा तब उसने कहा,

मुझे तो कुछ पता नहीं, मैं तो मूर्च्छित हो गयी थी, रुक्मिणीजी ने मुझे नया शरीर दिया है।’

भगवान पाण्डुरंग ने मेरे लिए इतने दिनों तक बंधन स्वीकार किया

sakku bai ki katha

घर का छोटे-से छोटा काम किया–यह जानकर सखू रोने लगी।

सास-ससुर और पति का पश्चात्ताप

सास-ससुर और पति ने पश्चात्ताप करते हुए कहा–’हम बड़े नीच हैं जो हमने साक्षात् लक्ष्मीपति भगवान पण्ढरीनाथ को यहां इतने दिनों तक बांधकर रखा और कष्ट पहुंचाए।

’ तीनों का हृदय बिल्कुल शुद्ध हो गया और वे सखूबाई का उपकार मानकर भगवान के भजन में लग गए।

sakku bai ki katha

भक्त भक्ति भगवंत गुरु चतुर नाम वपु एक।
इनके पद बंदन किएं नासत विघ्न अनेक।। (नाभादासजी

Filed Under: अध्यात्म Tagged With: SAKKU BAI KI KATHA

Reader Interactions

Comments

  1. Tarun says

    November 8, 2019 at 5:48 am

    Nice story

    Reply
    • indianpaperink says

      November 8, 2019 at 9:46 am

      thank you so much for your comment

      Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

Recent Stories

  • सेलम विच ट्रायल BY INDIAN PAPER INK
  • युगान्तर – एक सूरज जो रात को निकलता है पार्ट 1
  • फेमिनो की दुनिया पार्ट 2 – नितेश सिंह चौहान
  • जोकर एक शिकारी जासूस सीजन 2 पार्ट 4
  • एडवेंचर ऑफ़ करुण नायर – रहस्य ब्लादिमीर का पार्ट 6
  • रानी केतकी की कहानी भाग षष्ठ– इंशाअल्ला खाँ
  • राजा हरदौल की कहानी लास्ट पार्ट BY INDIAN PAPER INK
  • करुण नायर – नीले परिंदे का रहस्य लास्ट पार्ट
  • कलियुग – एक श्रापित राजकुमार पार्ट 14
  • हम सबके भगवान राम
  • राजा हरदौल की कहानी पार्ट 3 BY INDIAN PAPER INK
  • राजा हरदौल की कहानी पार्ट 2 BY INDIAN PAPER INK

CONNECT WITH US

  • Email
  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

Newsletter

Our Blog

Click Here

Footer

indian paper ink

1. About
2. Terms and conditions
3. Career
4. News and events

Connect With Us

  • Email
  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

Story Contest

1. Creative writing contest
2. Poem writing contest
3. Short story writing contest

Main Featured

1. Story of the day
2. Story of the month
3. Editor choice
4. Favorite stories

contact info

1. Mobile number – +91 83768 73901
2. Mail contact –

Info.sikhofoundation@gmail.com

3. Office Address – New Delhi, India

Newsletter

© 2019 IndianPaperInk